Sunday, March 28, 2010

डार्लिंगजी :पुस्तक समीक्षा

नर्गिस और सुनील दत्त की जोड़ी हमेशा हमारे लिए एक आयडियल जोड़ी रही है...लेकिन उनके मिलने की कहानी भी किसी फ़िल्मी कहानी से कम पेंचीदा नहीं है....जहाँ एक ओर बचपन से अपनी माँ के द्वारा नर्गिस सिनेमा-जगत में आ चुकी थी.....वहीँ सुनील दत्त..जिनका नाम बलराज दत्त हुआ करता था....अपने पिता की मृत्यु के बाद से ही माँ और छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारियां सँभालने में लगे थे....उन्होंने बंटवारे की पीड़ा भी झेली....क्लर्क की नौकरी के बाद रेडियो की नौकरी और फिर फ़िल्मी सफ़र की शुरुवात (जिसमे भी कई बाधाएँ आती रही)...इतनी आसान नहीं रहीं...लेकिन उसका कुछ अंदाज़ा "किश्वर देसा" की इस पुस्तक "डार्लिंगजी" से लगाया जा सकता है.......

जहां एक ओर नर्गिस एक मशहूर अभिनेत्री बन चुकी थीं...वहीँ सुनील का फिल्म-जगत में कोई नाम न था...नर्गिस को राज कपूर भा गए...और उन्होंने बिना किसी की परवाह किये..राज के साथ चलने का फैसला किया....राज पहले से शादीशुदा थे...लेकिन फिर भी नर्गिस उनके आकर्षण में बंधती चली गयी...नर्गिस ने राजकपूर के साथ कई फिल्मों में काम किया..ओर एक वक्त ऐसा आया जब वो राज के साथ ही काम करती थीं...उस समय वे केवल राज की बात ही मानती थी...राज ने नर्गिस को कई फिल्मों में काम करने से मना किया...इनमे से एक थी...मुगल--आज़म...

"मुग़ल--आज़म के समय नर्गिस एक बार फिर राजकपूर की इच्छाओं के नीचे दब गयी...........पहले,आसिफ ने इस फिल्म के लिए चन्द्रमोहन और नर्गिस को साइन किया था...नर्गिस का वही किरदार था जो बाद में मधुबाला ने किया था.....चन्द्रमोहन दस रील बनने के बाद ही चल बसे फिर आसिफ ने दिलीप कुमार और नर्गिस के साथ दुबारा शूटिंग की.पर राजकपूर ने कहा कि नर्गिस उस फिल्म में काम नहीं करेगी

इसी तरह राज कपूर की कामयाबी के पीछे नर्गिस का बहुत बड़ा हांथ रहा....

"...आवारा'से 'आह' और 'श्री ४२० 'तक के रोल छोटे होते चले गए बेशक वो राजकपूर की चाहत थी,पर उसकी कामयाबी बढती गयी और नर्गिस की क़द्र कम होती गयी."

"'बरसात','आवारा','श्री ४२०'.लगातार तीन हिट देने से राज कपूर निर्माता,निर्देशक और अभिनेता के रूप में छा गया और कोई भी उसके किसी भी किरदार में गलती निकाल सका.अगर उसे शुरुवात में नर्गिस की जरुरत थी,उसे अब यक़ीनन उसकी ज़रूरत थी.वह एक सितारा बन चूका था,नर्गिस से कहीं बड़ा स्टार ।"

इस तरह की नर्गिस की ज़िन्दगी से जुडी बातों के साथ-साथ नर्गिस और सुनील दत्त के जीवन की कई बातों को इस किताब में शामिल किया गया है.....जब सुनील दत्त ने "मदर इंडिया" की शूटिंग के दौरान अपनी जान पर खेलकर नर्गिस की जान बचाई.....इससे उनकी ज़िन्दगी ने एक नया मोड़ लिया....अपने इलाज के वक्त नर्गिस और सुनील दत्त करीब आ गए ओर उन्होंने शादी का फैसला कर लिया....नर्गिस ने सुनील दत्त से अपने बारे में खुलकर सारी बातें कीं....

"उसने कहा कि अपनी ज़िन्दगी की एक-एक बात इस तरह बताते हुए उसे कोई शर्म नहीं थी,और उसे किसी भी बात की चिंता नहीं थी,क्यूंकि वह जानती थी..'मुझे रोने के लिए सुनील के कंधे हमेशा मिलेंगे-और मैं यह भी जानती हूँ कि उसके कपडे मेरे आंसू सोख लेंगे कि लोगों की हंसी या मज़ाक बनने के लिए छोड़ दिए जायेंगे..."

आपस में इतना प्यार और मान-सम्मान होते हुए भी उन्होंने कई सालों तक अपने प्यार को छुपाए रखा...इसके कई कारण थे...एक तो वो 'मदर इंडिया' में माँ-बेटे की भूमिका में थे...ऐसे में जनता को उनका ऐसा रिश्ता पसंद न आता....दूसरा सुनील दत्त अभी इतने बड़े कलाकार नहीं थे...उन पर ये इल्ज़ाम लगाया जाता ..कि वो नर्गिस को अपनी सफलता की सीढ़ी बनाना चाहते हैं...वहीँ नर्गिस भी नहीं चाहती थी कि राजकपूर से रिश्ता टूटने के तुरंत बाद ही उनका नाम किसी और के साथ जुड़े,इससे उनकी छवि पर असर पड़ता..इसके अलावा इसी तरह के और भी कई कारण थे..जो इस पुस्तक में बताये गए हैं...सो उन दोनों को न चाह कर भी एक दूसरे से दूरी बना कर रखनी पड़ती थी...वे आपस में पत्र लिखा करते थे जिसमे वे अपना नाम पिया और हे देयर लिखते थे......ताकि किसी को उनके रिश्ते के बारे में पता न चले..........

रिश्तों के इस लम्बे दौर में उनके सामने कई मुश्किलें भी आई......जिनका इस पुस्तक में उल्लेख है...इसे सुनी-सुनाई बातें नहीं कहा जा सकता क्यूंकि इसमें उनके पत्रों को शामिल किया गया है,इस पुस्तक में सुनील दत्त और नर्गिस के प्यार और समर्पण को जानने का मौका मिलता है...इसमें नर्गिस की ज़िन्दगी में मिसेज नर्गिस दत्त बनने के बाद आये बदलाव को भी बताया गया है...उनके आखरी पलों को भी बड़ी बारीकी से शामिल किया गया जो बहुत ही मार्मिक हैं.....उनके बच्चों को भी इसमें शामिल किया गया है...नर्गिस के एक अभिनेत्री,एक बुआ,एक प्रेमिका,एक पत्नी,एक माँ,एक भाभी और एक समाज सेविका...इस तरह के उनके कई रूपों को इसमें शामिल किया गया है...साथ ही सुनील दत्त के जीवन को भी बखूबी उजागर किया गया है.....

इस पुस्तक से काफी हदतक फ़िल्मी दुनिया की सच्चाई से रूबरू होने का मौका मिलता है...हम सभी फ़िल्मी सितारों से इस हद तक प्रभावित रहते हैं कि उनकी निजी ज़िन्दगी में क्या हो रहा है इसकी उत्सुकता बनी रहती है...और हमारी इसी उत्सुकता को पूरी करने के लिए रिपोर्टर्स और मीडिया उन पर नज़र रखते हैं......इससे उनका जीवन कितना मुश्किल हो जाता है..वो अपनी ज़िन्दगी आज़ादी से जी ही नहीं पाते..कहीं न कहीं ये सवाल अपने आप से पूछने का मन करता है कि..क्या हमें उन्हें उनकी ज़िन्दगी आज़ादी से नहीं जीने देना चाहिए?

उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की हमारी चाह उनकी आज़ादी छीन लेती है...उन्हें अपने स्टार होने की ये एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है..फ़िल्मी दुनिया के चकाचौंध में चमकने वाले ये सितारे अपनी ज़िन्दगी आज़ादी से जी नहीं पाते और इसका कारण हम उनके चाहने वाले हैं.....सोचा ना था....

Tuesday, March 16, 2010

गुडी पडवा


गुडी पडवा...चैत्र मास का पहला दिन...जो की हिंदी कैलेंडर के नए साल का पहला दिन है....इसे महाराष्ट्र में नए साल के रूप में मनाया जाता है....इस दिन को शादी,नए काम शुरू करने,गहने और नयी संपत्ति खरीदने के लिए शुभ माना जाता है...गुडी पडवा एक ऐसा त्यौहार है...जिसकी शुरुवात कड़वा खाकर की जाती है...आज के दिन नीम की पत्तियाँ खाई जाती हैं...कहा जाता है...नीम की पत्तियाँ खाने से मन के अन्दर की सारी कडवाहट मिट जाती है....वैसे ये भी माना जाता है कि आज के दिन सुबह खाली पेट ७ कोमल नीम की पत्तियाँ और थोड़ी काली मिर्च खाने से साल भर बुखार नहीं होता॥

आज के दिन गुडी बनाकर उसकी पूजा की जाती है...जिसके लिए एक साडी को पूरी तरह पटली बनाकर एक लोटे में लकड़ी के सहारे खड़ा किया जाता है...इसे अपने घर में आँगन,छत या दरवाजे पर लगा कर पूजा करते हैं..इसमें बताशे की माला चढ़ाई जाती है....और पूजा की जाती है.....महाराष्ट्र में न केवल घरों में बल्कि दुकानों में भी इस तरह से गुडी बनाकर पूजा की जाती है...आज पूरनपोली भी बनाई जाती है...

मेरी और से सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं....आज नवरात्री का पहला दिन भी है....आज के दिन महाराष्ट्रियन त्यौहार के बारे में कुछ ज्यादा लिखने की चेष्टा की है...जो भी देखा वैसा ही लिखा.....कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ करने के साथ ही सुधार भी करें....वैसे किसी की भावनाओं को ठेस पहुचने के बारे में....सोचा ना था....


Friday, March 12, 2010

द टाइम ट्रेवलर्स वाइफ:पुस्तक समीक्षा

दो दिन पहले ही ''द टाइम ट्रेवलर्स वाइफ"पढ़कर पूरी की....शुरुवात में मुझे ये बुक थोड़ी अजीब लगी...लेकिन जब मैं इसे पढ़ती गयी..तो इस अजीब-सी लगने वाली बुक ने मुझे खुद से बाँध लिया...जब भी समय मिलता बस मैं इसे पढने में लग जाती..और धीरे-धीरे मैं न सिर्फ इस बुक से,बल्कि इसके किरदारों से भी जुड़ गयी...अब तक की मेरी पढ़ी हुई सभी पुस्तकों में से ये एक ऐसी बुक है..जो पूरी तरह से काल्पनिक है....लेकिन फिर भी ये मुझे बांधे रखने में सफल हुई....

इस बुक की सबसे बड़ी ख़ासियत है...इसके किरदार..हेनरी और क्लेअर...जो की एक दूसरे से पहली बार तब मिले जब हेनरी ३६ साल का और क्लेयर ६ साल की थी...और दोनों ने शादी की तब हेनरी ३० साल का और क्लेयर २२ साल की थी...ये अजीब जरूर लगता है...लेकिन ये ही सच है...इसका कारण है हेनरी की एक अनोखी बीमारी...जिसके कारण हेनरी अचानक ही अपने बीते समय या भविष्य में चला जाता है...इस पर हेनरी का कोई बस नहीं चलता....

वहीँ दूसरी ख़ासियत है...इसका लेखन....लेखक ने बहुत ही ख़ूबसूरती और प्यार से इस बुक को लिखा है...ये बात बुक को पढ़ते हुए ज़ाहिर होती है...हर पैराग्राफ बहुत ही बारीकी से लिखा जान पड़ता है...हर परिस्थिति,हर भाव,आसपास की जानकारी,मौसम का उल्लेख...इतना उम्दा है की पाठक को ऐसा लगता है...जैसे वो कोई बुक नहीं पढ़ रहा,बल्कि उस बुक का ही एक हिस्सा हो...यही कारण है कि,पाठक को इस बुक और उसके किरदारों से लगाव हो जाता है.....

इस बुक को पढना उन लोगों के लिए बहुत ही अच्छा हो सकता है..जो खुद भी बुक लिखना चाहते हों...इससे पाठकों को बांधकर रखने का गुर सीखा जा सकता है..और प्रभावशाली लेखन भी.....

जब तक मैं इस बुक को पढ़ती रही मैंने खुद को एक रोमांचक यात्रा में पाया....मैंने कहीं पढ़ा था.."एक अच्छी बुक वो होती है...जिसे पूरी करने के बाद आपको ऐसा लगे,जैसे आप अपने किसी दोस्त से बिछड़ गए हों..".....कुछ दिनों पहले तक मेरे लिए ये किसी की कही हुई बात थी...लेकिन आज ये मेरा अनुभव है....किसी बुक और उसके किरदारों से यूँ जुडाव हो जायेगा.....सोचा ना था....