Monday, October 9, 2017

मन के हारे हार है,मन के जीते जीत

कल “ विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस ” है और मुझे लगता है शायद आज का दौर ऐसा है जब हर इंसान को मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। पहले की ज़िंदगी में भी परेशानियाँ कम नहीं थीं लेकिन आज के दौर में जिस तरह लोग हर छोटी बड़ी बात का प्रेशर लेते हैं वो यहीं दर्शाता है कि हममें अपने पूर्वजों की अपेक्षा धैर्य और सहनशीलता की बहुत कमी है।

जिस गति से ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण की चिंता की जा रही है उसी गति से मानसिक स्वास्थ्य में भी गिरावट आ रही है और हम इन सभी बातों को एक जैसे ही नज़रन्दाज करते हैं। आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है अगर कोई और आगे बढ़ जाए तो हम मेहनत नहीं करना चाहते बल्कि उसके आगे बढ़ने पर टेंशन पाल लेंगे या उसे पीछे खींचने की कोशिश करते हैं। ऑफ़िस और काम का प्रेशर तो ख़त्म हो नहीं पाता फिर घरेलू ज़िंदगी में भी राहत नहीं है, दस तरह के टेंशन वहाँ पाले बैठे हैं और मानो उससे मन नहीं भरा कि सोशल मीडिया भी ज़िंदगी में शामिल हो चुका है या कुछ के लिए ये कहें कि सोशल मीडिया ही ज़िंदगी हो गया है। दूर-दराज़ के लोगों से मिलने का माध्यम अब पास के लोगों से दूर होने का कारण बन गया है और इसमें हम सभी बराबर रूप से दोषी हैं,ना मैं बची हूँ ना आप।

हम दिन भर में दिमाग़ में कितनी ही बातें और परेशानियाँ भरते जाते हैं और हम अपना मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ बैठते हैं। सोशल मीडिया ही नहीं…आसपास के लोगों की बातें भी लें तो कोई किसी और की सुनना ही नहीं चाहता…सब अपने-अपने में मस्त हैं। ऐसे में कभी कोई परेशानी आ भी जाए तो अपनों से कहने से ज़्यादा लोगों से बाँटना पसंद आता है और अगर वो भी ना समझें तो डिप्रेस होना आम हो गया है। आजकल तो फिर भी एक छोटी-सी पहल ये शुरू हुई है कि डिप्रेस होना आम बात मानी जाने लगी है,ये दुखद है कि इतने बड़े पैमाने पर लोग डिप्रेस होते हैं पर कम से कम राहत की बात ये हैं कि इसे पहचाना जाने लगा है और बहुत से लोग इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास जाने में नहीं कतराते। लेकिन अब भी बड़ी तादात में ऐसे लोग है जो डिप्रेस होने को पागल होना मानते हैं और कभी ये मानते ही नहीं कि उन्हें ऐसी कोई परेशानी है।

देखा जाए तो शरीर के स्वास्थ्य से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है मानसिक स्वास्थ्य का ठीक होना। शरीर भी कहीं ना कहीं मन से जुड़ा हुआ है…वो कहते हैं ना अगर मन से चाहो तो कुछ भी हो सकता है तो सोचिए अगर मन ही सही ना हो…उदास हो…अकेला हो तो शरीर कैसे स्वस्थ रह सकता है। शरीर का स्वास्थ्य पूरी तरह मन से जुड़ा हुआ है। और आप मानसिक रूप से स्वस्थ हैं या नहीं ये जानना भी ज़्यादा मुश्किल नहीं है। काम, घर, परिवार को लेकर छोटी-मोटी परेशानियाँ तो चलती रहती हैं और आम भी हैं…उसी तरह उदास होना, रोना, निराश होना भी आम है जब तक इनका असर लम्बे समय तक ना हो। हाँ…अगर आप लम्बे समय तक उदास ही रहते हैं, आपका मन किसी काम में नहीं लगता, अकेले ही रहने का मन करता हो, किसी से बात करने का मन ना करता हो, लोगों को देखकर या उनके आसपास आने पर चिढ़ महसूस होती हो, अजीब-सी चिडचिड़ाहट  होती हो…किसी बात से कोई ख़ुशी नहीं मिलती हो…खाने का मन ना होता हो…काम से भी किसी से मिलने का मन ना करता हो तो आपको ज़रूर अपने मानसिक स्वास्थ्य के विषय में सोचना चाहिए और तुरंत किसी से मदद लेनी चाहिए। डॉक्टर के पास जाने में झिझक हो तो पहले किसी क़रीबी मित्र से मदद ली जा सकती है यक़ीन मानिए कुछ दोस्त ऐसे होते हैं जो आपको देखते ही आपकी परेशानी का अनुभव कर लेते हैं और मदद करने के लिए तैयार रहते हैं बस आपको एक क़दम बढ़ाना होता है। वो क़दम ज़रूर बढ़ाइए। दोस्तों के अलावा आप परिवार के  सदस्यों से भी मदद ले सकते हैं।


वहीं अगर आप पूरी तरह स्वस्थ हों…तो भी अपने आसपास किसी के बदलते व्यवहार को पहचानिए और उसकी मदद करने के लिए ख़ुद आगे आइए। अगर किसी ने अचानक आपसे बात बंद कर दी हो तो भी उसे अकड़ू या घमंडी समझने से पहले ये जानने की कोशिश कीजिए कि कहीं वो चुप तो नहीं हो गया है…ये जानने की कोशिश कीजिए कि वो अपने आप में घुलता तो नहीं जा रहा है। इसी तरह घर में अगर कोई सदस्य बहुत ज़्यादा चिडचिड करता हो या सभी से हर छोटी-बड़ी बात में लड़ता तो भी उससे लड़ने और उसे बातें सुनाने की बजाय उसके मन की बात जानने की कोशिश कीजिए, उसके व्यवहार के पीछे की बात जानिए और उसे प्यार और अपनापन दीजिए। ज़रूरत हो तो किसी मनोचिकित्सक से भी मिलवाइए। लेकिन ये भी इतना आसान काम नहीं है, बहुत ज़िम्मेदारी का काम है।

इसी बात पर एक बात याद आयी। हाल ही में मेरी एक सहेली ने अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की को इस तरह मानसिक परेशानी से गुज़रते देखकर उससे बात की थी और उसकी मदद कैसे की जाए ये समझ ना आने पर कुछ लोगों से मदद माँगी। सहेली का ऐसा करना उस लड़की को बिलकुल सही नहीं लगा और उसने सहेली से बात करना भी बंद कर दिया, सहेली ने तो ख़ैर हिम्मत नहीं हारी और उस लड़की के साथ अब भी है। लेकिन ये समझना ज़रूरी है कि ऐसे मामले बहुत ज़्यादा संवेदनशील होते हैं और उन्हें हल करना भी थोड़ा मुश्किल होता है। अगर आप मदद करना चाहते ही हैं तो किसी एक्स्पर्ट से सलाह लें और उस बात को भी गोपनीय रखें क्यूँकि अगर किसी ने आपसे मदद माँगी है तो वो आप पर उस वक़्त बहुत ज़्यादा भरोसा कर रहा है जब वो आसपास के कई लोगों और शायद ख़ुद पर भी भरोसा नहीं कर रहा। ऐसे में आपको उसका भरोसा बनाए रखना है और उसका भरोसा भी बढ़ाने की भी ज़िम्मेदारी आप पर है। बाद में आप उसे भी भरोसा दिलाकर उस एक्स्पर्ट से मिलवा सकते हैं।

इन दिनों मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जितनी परेशानियाँ बढ़ रही हैं उनसे लड़ने की क्षमता उतनी ही कम होती जा रही है। आज “विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस” पर अपने मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने का प्रण तो ले हीं साथ ही आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की ज़िम्मेदारी लेने का भी बीड़ा उठाएँ। वैसे मन के दुःख, परेशानी को बाहर निकालने का एक बहुत ही अच्छा ज़रिया है डायरी लिखना। अपने जीवन में इसे शामिल करें, दोस्तों के साथ बिताने के लिए कुछ समय निकालें, चाहें तो अपनों के साथ पत्र-व्यवहार शुरू करें। ख़ुद को ख़ुश रखें, अगर परेशान हों तो मदद लें और परेशान की मदद करें…याद रखिए जीवन में ख़ुशी से बड़ी कोई दौलत नहीं है अगर आप ख़ुश नहीं हैं तो दुनिया की कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती।  


मन ही तो है जो जीतने में मदद करता है और मन ही है जो हरा देता है…ख़ुश रहने के लिए भी कभी सोचना होगा…सोचा ना था….

Monday, September 25, 2017

कुएँ का मेंढक

कुएँ में कुछ मेंढक परिवार रहा करते थे..सभी बहुत ख़ुश थे चारों ओर गोल दीवार थी,पानी था ऊपर आसमान भी दिखता था गोल..बाप-दादा के ज़माने से सब वहीं खेलते खाते और आराम से वहीं ज़िंदगी बिता देते थेलेकिन एक नया बच्चा दुनिया में आया,उसके मन में कई सवाल थे..कुएँ से बाहर की दुनिया को लेकर..सब उसके सवाल टाल देते..पर जवाब तो चाहिए ही था..एक दिन सबसे छुपते-छुपाते वो मेंढक कुएँ से बाहर निकल गयादुनिया देखकर बहुत ख़ुश हुआ कई तरह के जीव-जंतु,खाने की चीज़ें सब मिली..कुछ देर ख़ुशी में तो सब भूल गया लेकिन घर की याद आयी..इधर कुएँ में सब परेशान थे..तभी वो मेंढक बस भागता हुआ वापस घर पहुँचा और सबको कुएँ से बाहर की दुनिया के बारे में बताने लगा..उसकी बहकी-बहकी बातों से सब हैरान हो गए..वैद्य से उसका इलाज करवाया गया..वो समझाता रहा कि बाहर की दुनिया कितनी अलग और अच्छी है..आख़िर  सब उसे पागल कहने लगे और ये बात कुएँ में फैल गयी कि बाहर जाने की वजह से उसकी ये हालत हुई है।बड़े मेंढक अपने काम में मशगूल थे और दूसरी ओर वो मेंढक सारे दिन बच्चों को बाहर की कहानियाँ सुनाता रहता..और बाहर जाने के सपने देखता और तो और कुछ बच्चे भी उसके साथ जाने को तैयार हो गए..बाक़ी मेंढकों को जैसे ही ये बात पता चली एक मीटिंग बुलाई गयी..उस मेंढक को बाग़ी और पागल घोषित किया गया..क़ैद में डाल दिया गया।

अगली सुबह वो मेंढक कुएँ में नहीं मिला..कुछ मेंढक बच्चे भी ग़ायब थे।बुज़ुर्ग मेंढकों ने कुँए से बाहर जा सकने के दरवाज़े बंद कर दिए..कुएँ में वापस पुरानी ख़ुशहाली गयी..कुछ बच्चे अब भी दबे स्वर में उस मेंढक को अपना हीरो मानते हैं और उसकी बनायी तस्वीर देखते हैं..वो किसी दिन बाहर की दुनिया में जाने का सपना देखते हैं,लेकिन वो अब किसी से बाहरी दुनिया के बारे में कोई सवाल नहीं पूछते।


कुँए का मेंढक बने रहना ही कभी फ़ायदेमंद हो जाएगा...सोचा ना था....

Sunday, July 16, 2017

मैं लिखना चाहती हूँ



मैं लिखना चाहती हूँ
हर अहसास को,हर जज़्बात को
उम्मीदों को आशाओं को
ख्वाहिशों को,अरमानों को
धड़कन के हर रंग को
हर चाहत और उमंग को
बीती हुई हर बात को
अपनी हर सुबह हर रात को
हर अजनबी के अपनेपन को
और परिचितों के बदले रंग को
अपने हर स्वार्थ,लालच और बेईमानी को
अपनी हर नादानी को
हर हारे हुए पल को
अपने आज को और कल को
अपने हर अपमान को
जाने पहचाने से उस अनजान को
हामी में दबी न को
हर न में छुपी हाँ को
जो कही न कभी,उस बात को
हर राज़ और अंदाज़ को
ख़ामोशी के उस गीत को
मौन के संगीत को
बस लिखना चाहती हूँ
हर उस बात को जो कह न सकूंगी
शायद कभी..

एक ऐसी तुकबंदी जिसके विषय में कभी सोचा ना था....